जन्मदिन मुबारक़ योगेंद्र सिंह यादव जी,परमवीर चक्र...!

जय जवान जय किसान जय भारत

जन्मदिन मुबारक़ योगेंद्र सिंह यादव जी,परमवीर चक्र...!

ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव.
मात्र 19 वर्ष की उम्र में भारतीय सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र के विजेता.
राष्ट्र की उत्कृष्ट शौर्य परम्परा का महानतम जीवंत व्यक्तित्व.
जन्म -10 मई, सन 1980 ई. अहीर ग्राम, औरंगाबाद, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश.

योगेन्द्र सिंह यादव जी का जन्म उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जनपद के औरंगाबाद अहीर गांव में 10 मई, 1980 को हुआ था। 27 दिसंबर, 1996 को सेना की 18 ग्रेनेडियर बटालियन में भर्ती हुए योगेन्द्र सिंह यादव की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी सेना की ही रही है. इनके पिता करन सिंह यादव भी भूतपूर्व सैनिक थे वह कुमायूँ रेजिमेंट से जुड़े हुए थे और 1965 तथा 1971 की लड़ाइयों में हिस्सा लिया था। 
पिता के इस पराक्रम के कारण योगेन्द्र सिंह यादव तथा उनके बड़े भाई जितेन्द्र दोनों फौज में जाने को लालायित थे। दोनों के अरमान पूरे हुए। बड़े भाई जितेन्द्र सिंह यादव आर्टिलरी कमान में गए और योगेन्द्र सिंह यादव ग्रेनेडियर बन गए। योगेन्द्र सिंह यादव जब सेना में नियुक्त हुए तब उनकी उम्र केवल 16 वर्ष पाँच महीने की थी। 19 वर्ष की आयु में वह परमवीर चक्र विजेता बन गए। उन्होंने यह पराक्रम कारगिल की लड़ाई में टाइगर हिल के मोर्चे पर दिखाया। 
कारगिल की लड़ाई में पाकिस्तान का मंसूबा कश्मीर को लद्दाख से काट देने का था, जिसमें वह श्रीनगर-लेह मार्ग को बाधित करके कारगिल को एकदम अलग-थलग कर देना चाहते थे, ताकि भारत का सियाचिन से सम्पर्क मार्ग टूट जाए इस तरह पाकिस्तान का यह मंसूबा भी कश्मीर पर ही दांव लगाने के लिए था। टाइगर हिल इसी पर्वत श्रेणी का एक हिस्सा था। द्रास क्षेत्र में स्थित टाइगर हिल का महत्व इस दृष्टि से था कि यहाँ से राष्ट्रीय राजमार्ग 1A पर नियंत्रण रखा जा सकता था। इस राज मार्ग पर अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए पाकिस्तानी फौजी ने अपनी जड़ें मजबूती से जमा रखी थीं और उनका वहाँ हथियारों और गोलाबारूद का काफ़ी जखीरा पहुँचा हुआ था। भारत के लिए इस ठिकाने से दुश्मन को हटाना बहुत जरूरी था। टाइगर हिल को उत्तरी, दक्षिणी तथा पूर्वी दिशाओं से भारत की 8 सिख रेजिमेंट ने पहले ही अलग कर लिया था और उसका यह काम 21 मई को ही पूरा हो चुका था। पश्चिम दिशा से ऐसा करना दो कारणों से नहीं हुआ था। पहला तो यह, कि वह हिस्सा नियंत्रण रेखा के उस पार पड़ता था, जिसे पार करना भारतीय सेना के लिए शिमला समझौते के अनुसार प्रतिबन्धित था, लेकिन पाकिस्तान ने उस समझौते का उलंघन कर लिया था दूसरा कारण यह था कि अब पूरी रिज पर दुश्मन घात लगा कर बैठ चुका था। ऐसी हालत में भारत के पास आक्रमण ही सिर्फ एक रास्ता बचा था।
3-4 जुलाई 1999 से शुरू होकर 11 जुलाई 1999 तक चलने वाला विजय अभियान इतना सरल नहीं था और उसकी सफलता में ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव का बड़ा योगदान है। ग्रेनेडियर यादव की कमांडो प्लाटून 'घटक' कहलाती थी। उसके पास टाइगर हिल पर कब्जा करने के क्रम में लक्ष्य यह था कि वह ऊपरी चोटी पर बने दुश्मन के तीन बंकर काबू करके अपने कब्जे में ले। इस काम को अंजाम देने के लिए 16,500 फीट ऊँची बर्फ से ढकी, सीधी चढ़ाई वाली चोटी पार करना जरूरी था। इस बहादुरी और जोखिम भरे काम को करने का जिम्मा स्वेच्छापूर्णक योगेन्द्र ने लिया और अपना रस्सा उठाकर अभियान पर चल पड़े। वह आधी ऊँचाई पर ही पहुँचे थे कि दुश्मन के बंकर से मशीनगन गोलियाँ उगलने लगीं और उनके दागे गए राकेट से भारत की इस टुकड़ी का प्लाटून कमांडर तथा उनके दो साथी मारे गए। स्थिति की गम्भीरता को समझकर योगेन्द्र सिंह ने जिम्मा संभाला और आगे बढ़ते बढ़ते चले गए। दुश्मन की गोलाबारी जारी थी। योगेन्द्र सिंह लगातार ऊपर की ओर बढ़ रहे थे कि तभी एक गोली उनके कँधे पर और रो गोलियाँ उनकी जाँघ पेट के पास लगीं लेकिन वह रुके नहीं और बढ़ते ही रहे। उनके सामने अभी खड़ी ऊँचाई के साठ फीट और बचे थे। उन्होंने हिम्मत करके वह चढ़ाई पूरी कीऔर दुश्मन के बंकर की ओर रेंगकर गए और एक ग्रेनेड फेंक कर उनके चार सैनिकों को वहीं ढेर कर दिया। अपने घावों की परवाह किए बिना यादव ने दूसरे बंकर की ओर रुख किया और उधर भी ग्रेनेड फेंक दिया। उस निशाने पर भी पाकिस्तान के तीन जवान आए और उनका काम तमाम हो गया। तभी उनके पीछे आ रही टुकड़ी उनसे आ कर मिल गई। आमने-सामने की मुठभेड़ शुरू हो चुकी थी और उस मुठभेड़ में बचे-खुचे जवान भी टाइगर हिल की भेंट चढ़ गए। टाइगर हिल फ़तह हो गया था और उसमें ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह का बड़ा योगदान था। अपनी वीरता के लिए ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह ने परमवीर चक्र का सम्मान पाया और वह अपने प्राण देश के भविष्य के लिए भी बचा कर रखने में सफल हुए यह उनका ही नहीं देश का भी सौभाग्य है।

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