आसमानी आपदा को सुल्तानी आपदा में तब्दील करने वालो की मेरी सलाह -आदरणीय जगदानंद सिंह जी
अप्रवासी बिहारी भाइयों की सुरक्षित वापसी जितना जल्दी संभव हो सके सुनिश्चित होना चाहिए। इस बात को लेकर श्री तेजस्वी यादव जी नेता प्रतिपक्ष लगातार बिहार सरकार की सहयोगी की भूमिका में रहे है। सिवा अप्रवासी बिहारी भाईयों की घर वापसी को लेकर मत भिन्नता रहा है। इसके लिए बिहार सरकार को वृहत पैमाने पर कार्य शुरू करना चाहिए। हालांकि यह कार्य लॉकडॉउन के शुरुआती दौर में ही होना चाहिए था। इससे कोरोना वायरस के संक्रमण की संभावना शून्य के बराबर रहता। फिर भी अभी बहुत देर नहीं हुआ है। इस कार्य हेतु वृहत कार्य योजना की आवश्यकता होगी जिससे कुशल, अकुशल और अर्ध कुशल कामगारों का जीवन सुरक्षित करने के साथ उनकी आर्थिक स्वालंबन को ध्यान में रखना होगा। साथ ही इस तरह का प्रोग्राम बनाया जाना चाहिए जिससे उनके श्रम उत्पादकता का सदुपयोग बिहार के आर्थिक विकास में लिया जा सके। इस कोरोना वायरस संकट को बिहार की सरकार चाहे तो एक आर्थिक विकास के अवसर के रूप में भी ले सकती है। क्योंकि इनकी श्रम कुशलता और उत्पादकता से देश की अर्थव्यवस्था और हरित क्रांति में चार चांद लगता है। ये कुशल कामगार किसी के लिए बोझ नही है बल्कि बिहार के कमाऊ पुत्र है जो अपने कुशल श्रम से साठ से सत्तर हजार करोड़ रुपया बिहार की अर्थव्यवस्था में प्रतिवर्ष लगातार जोड़ते रहे है। ये वो लोग है जो अपनी ही गरीबी को दूर नहीं करते बल्कि ये बिहार सरकार की गरीबी को भी दूर करते है। अब यहाँ पर बिहार की सरकार को कुछ सुझाव है जिससे सबक लेकर बिहार को उन्नति के पथ पर ले जाया जा सकता है।
1. सबसे पहले अप्रवासी कामगारों की संख्या जो अनुमानित हैं लगभग सत्तर से पचहत्तर लाख है। इसमें कुछ लोग पंजाब और हरियाणा में कृषि कार्य हेतु मौसमी मजदूर के रूप में अस्थायीरूप से आना जाना रहता है।बिहार से बाहर जाकर अपने श्रम के एवज में पैसा पाते है जिससे अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करते है साथ ही बिहार के कुल जीडीपी में अपना अमूल्य योगदान देते है। जिसमे तकरीबन पन्द्रह लाख के आसपास लॉकडॉउन के पूर्व होली के शुभ अवसर पर अपने गृह प्रान्त लौटे थे, जो होली के बाद अपने कार्य स्थल पर जाने की तैयारी कर रहे थे लॉकडॉउन के चलते वापस नहीं लौट पाए थे। लॉकडॉउन के उपरांत तकरीबन पन्द्रह लाख लोग जैसे-तैसे पैदल, साइकल और निजी वहनों से अफरा तफरी में वापस आ चुके है। उसके बाद करीब चालीस से पैंतालीस लाख लोग अभी भी बाहर विभिन्न स्थानों पर फॅसे हुए है जिसमे सत्ताईस लाख लोग सरकारी मदद हेतु ऑनलाइन आवेदन दे रखे है। जिसमें बहुतो के पास आधुनिक एंड्रॉइड मोबाइल फ़ोन और बिहार का बैंक एकाउंट नहीं होने के चलते ऑनलाइन आवेदन नहीं कर पाए लोग भी है।
2. अनुमानित अप्रवासी बिहारी भाई जिनकी संख्या तकरीबन चालीस से पैंतालीस लाख है। इनको बिहार वापस लाने में ट्रेन और बस भाड़ा के रूप में अनुमानित 1500 करोड़ के आसपास खर्च आना चाहिए। जिसकी अनुमति ट्रेन और बस से लाने की भारत सरकार कल ही दे चुकी है। राजद के लंबे समय से इस मांग को महीनों से भारत सरकार और बिहार सरकार हिलाहवाली कर रही थी। अभी भी नीतीश कुमार जी की मंशा स्पस्ट नहीं है। कल जितने भी मोबाइल न0 सरकारी पदाधिकारियों के दिए गए थे उसमें से ज्यादातर या तो बन्द पड़े हुए है या व्यस्त होने का टोन आ रहा है। यहाँ तक कि बिहार सरकार ने बाहर से आने के लिए स्पेशल ट्रेन में आने वालों के लिए कोई गाइड लाइन भी नहीं जारी किया है। रही बात खर्चों का वह कोई बड़ी रकम नहीं है। जो कि बिहार सरकार के वार्षिक बजट का 1% से भी कम होना चाहिए। दूसरा खर्च उनके आने के बाद कोरोंटाइन पीरियड में भोजन, चिकित्सा और आवासन में 3000 हजार करोड़ के आसपास खर्च आना चाहिए। यह रकम कोई बहुत बड़ी रकम नहीं है। क्योंकि बिहार सरकार का बजट अब करीब दो लाख करोड़ के आसपास है जिसमे कमिटेड एक्सपेंडिचर आधा के करीब है। बाकी आधा विकास एवं कल्याणकारी योजना के मद में खर्च होना है। अब सरकार को आपातकालीन परिस्थितियों के अनुरूप अपने बजट खर्च के प्राथमिकता में बदलाव भर करना है। बिहार के किसी भी सभ्य नागरिक को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए ना ही होने की संभावना है।
3. ऐसे कामगार जो बिहार से बाहर से आये है या ऐसी आबादी जो पहले से बिहार में है ऐसे निर्धनतम आबादी की जीविका सुनिश्चित करना राज्य सरकार का नैतिक दायित्व है। साथ ही राज्य की अर्थव्यवस्था पर बोझ न बने इसके लिए विस्तृत कार्ययोजना बनाकर बिहार के बजट में मनरेगा और जलछाजन जैसे योजनाओं के लिए विशेष बजट का उपबंध करना चाहिए। इस महत्वाकांक्षी योजना के माध्यम से गांव के आहार, पाइन, तालाब, कुंआ, कच्चे सड़क और बाढ़ सुरक्षात्मक तटबंध जैसे कार्य जिसमे रोजगार सृजन की अधिकतम संभावना हो ऐसे कार्य को 30 जून मानसून आने के पूर्व कार्य को प्राथमिकता के आधार पर युद्धस्तर पर सुनिश्चित करना चाहिए। इसके लिए इस मद में वार्षिक बजट को तीन से चार गुना कर देना चाहिए। इसके परिणामस्वरूप बिहार के कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर गुणात्मक फर्क डालेगा। क्योंकि किसी भी निम्न मध्यवर्गीय और मध्यवर्गीय परिवार के पास आया पैसा पुनः बिहार की अर्थव्यवस्था में तत्काल वापस 25% के करीब भोजन इत्यादि और 75% करखनिया माल(साईकल, मोटरसाइकिल, मोबाइल,कपड़ा और उपभोक्ता सामानों) के क्रय में चला जायेगा। मेरा कहने का तात्पर्य यहाँ यह है कि जो अभी आसमानी आपदा को सुल्तानी आपदा में तब्दील कर दिया गया है देश और प्रदेश के सामने आया है इसको विशेष अवसर के रूप में तब्दील किया जा सकता है। जिसके कुशल श्रम से देश के विभिन्न कोनों में कृषि और औद्योगिक क्रांति लाने में कामयाब हुए है। वहीं बिहारी कुशल श्रम बिहार के तकदीर को क्यों नहीं बदल सकते है। बस आज आवश्यकता है सही दिशा में एक ठोस कदम उठाने का।
नीतीश कुमार जी आप बिहार में पिछले पन्द्रह साल से मुख्यमंत्री है। इतना लंबा कार्यकाल किसी राज्य और समाज के बदलाव के लिए कम नहीं होता है। अब चला-चली के बेरा में एक ठोस निर्णय लेने का वक़्त आन पड़ा है। आप चाहे तो अपने क्रांतिकारी और समावेशी निर्णय से बिहार के गरीब लोगों का भाग्य बदल दे, या यथास्थिति बनाये रख इतिहास के कूड़ेदान में फेंक दिए जाने का इंतज़ार करें। अब निर्णय आपको करना है की आप किस तरह से बिहार के इतिहास में याद रखा जाना पसंद करेंगे।
भवदीय
जगदानंद सिंह
प्रदेश अध्यक्ष
राष्ट्रीय जनतादल
बिहार
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