गुजरात के क्षत्रिय अहीर रणबांकरों के शौर्यवान इतिहास,संस्कृति आदि का वर्णन:-यादव उत्थान समिति भारत

गुजरात के क्षत्रिय अहीर रणबांकरों के शौर्यवान इतिहास,संस्कृति आदि का वर्णन:-

 गुजरात में एक कहावत है "आहिर नो आसरो" जिसका मतलब है "अहीर का आश्रय या सहारा"।मुसीबत या प्रलय के समय जब किसी को कहीं भी ठीकाना नहीं मिलता तो वो अहीर की शरण में जाता है।इस का सबसे बड़ा उदहारण है परम बलिदानी श्री देवायत बोदर जी और भोजा मकवाना।
जूनागढ़ के चुडासमा राजपूत जब सोलंकी राजपूतो से लड़ाई में मारे गये थे तो जूनागढ़ की रानी ने अपने बच्चे को अहीरों की शरण में भेज दिया जिस से कि उस की जान बच जाए i शरणागत के सहारे का धर्म निभाते हुए वीर देवायत बोदर ने अपने पुत्र ऊगा बोदर का बलिदान दिया और अपनी तलवार के जोर पर नवघन राजपूत के प्राणों की रक्षा की,जब नवघन बड़े हुए तो श्री देवायत बोदर जी और उनकी क्षत्रिय अहीर सेना ने जूनागढ़ पर चढ़ाई कर सोलंकि राजपुतो को हराकर रा नवघन को जूनागढ़ का राजा बनाया,ऐसे ही एक कहानी गुजरात की श्री भोजा मकवाना जी की है जब गुजरात के मोरबी पर महूमद बेगड़ा ने हमला किया तो युद्ध में जडेजा राजपूत पराजित हुए,जडेजा राजा रणमल जी अपनी पत्नीऔर पुत्र अभय को लेकर वहा से निकल पड़े और वीर अहीर भोज मकवान जी के शरण में गए।क्षत्रिय और आश्रय धर्म निभाते हुए भोज मकवाना जी ने महमूद बेगड़ा से जडेजा राजा की रक्षा करने का वचन दिया।महमूद बेगड़ा ने विशाल मुसलिम सेना के साथ भोजा मकवाना के गांव पर हमला कर दिया,कई घंटों तक अहीरो और मुस्लिम सेना में युद्ध चला।मात्र कुछ हज़ार यदुवंशी अहीर क्षत्रियों ने महमूद की विशाल सेना से लोहा लिया अपने वचन की लाज के खातिर । केसरिया साफ़ा पहन और " जय भवानी , जय द्वारिकाधीश " के रणघोषों से मात्र कुछ हज़ार यदुवंशी क्षत्रियों ने महमूद की विशाल सेना को थर्रा ! ! दिया । अपने वचन के पालन की खातिर भोज मकवाना ने महमूद को रणभूमि में ललकारा और अपने शमशीर के प्रहार से दुश्मनों का सर रणचंडी को अर्पित करने लगे । भयंकर युद्ध लडते हुए भोज आपा और उनके क्षत्रिय अहीर रणबांकुरे वीरगति को प्राप्त हो गए लेकिन जीतेजी जडेजा राजा को महमूद के हवाले नहीं किया। 

पूर्वांचल के अहीरो की तरह गुजरात के भी अहीरों द्वारा गौ रक्षा की असाधारण वीरता की कहानी गुजरात में आपको मिलेगी जिसमे से सबसे प्रसिद्ध नोडा डांगर जी और हिमरा बापा पिठिया की है,वीर अहीर नोडा डांगर जी ने ईद के दिन मुगल बादशाह अकबर के दरबार में शेर का जबड़ा अपने हाथों से फाड़कर शेर को मार डाला था और गौ माता की रक्षा की थी।गुजरात के वीर अहीर हिमरा बापा पीठिया का सर कटने के बाद भी धर लड़ा था , गौ माता का अपहरण करने आए गुंडों से, उनका सर कटने के बाद भी कई किलोमीटर तक धर पीछा किया था दुश्मनों का ।

उसी तरह स्त्री की रक्षा करने के लिए अहीरों द्वारा युद्ध करने की अनेको असाधारण कहानिया आपको गुजरात में मिल जाएगी जिनमे वीहा आपा डेर की जगत प्रसिद्ध है,जब गुजरात की चीतल गाँव की स्त्रियों को अरब लुटेरे उठा कर ले जा रहे थे तब,वीर अहीर विहा आपा डेर ने उनको रोका और उनसे युद्ध लड़ा अकेले विहा आपा डेर अकेले सैकड़ो अरब सैनिको से युद्ध लड़ रहे थे,उनमे से एक अरब सैनिक ने विहा आपा डेर का सर तलवार से काट कर धड़ से अलग कर दिया था।सर कटने के बावजूद विहा आपा डेर का धर लड़ता रहा और 19 किमी दूर तक अरब सैनिको का पीछा किया,विहा आपा डेर का जहाँ सर और धर गिरा वहाँ आज उनका मंदिर है।

प्राचीन समय में पुरे गुजरात पर अहीरों का ही राज्य था और मध्यकाल में भी कई रियासत थे जैसे मोरबी अहीर राजवँश,आहीर सांगण आपा गजिया ने अपने तलवार के बल पर मोरबी में अहीर राजवंश की स्थापना की थी।मोरबी के गोरशाह सम्राट को पराजित करके आहीरो ने ई.स .1560-70 से 1698  तक मोरबी पर शासन किया था।

आपको बता दे की भारत की आजादी में भी गुजरात के अहीरों का बहुत योगदान था,90 परसेंट हिन्दू आबादी को नजरअंदाज कर जूनागढ़ का नवाब जूनागढ़ को पाकिस्तान में मिलाने जा रहा था तब नवाब को गुजरात के महान स्वतंत्रता सेनानी वीर अहीर  मेणंदबापा डांगर  जी ने रोका था।

गुजरात को अहीरों के Aggressive क्षत्रिय परंपरा के कारण लाठ-देश/लठ्ठ-देश भी कहा गया है।
दुष्ट जरासंध के बार बार आक्रमण के कारण द्वारिकाधीश ने गुजरात में अहीरों को स्थापित कर यहीं राज-पाठ स्थापित किया।

गुजरात में द्वारिका, राजकोट कच्छ, जामनगर, भुज, सोमनाथ, अमरेली, गिर, वैरावल, राजकोट, जूनागढ़ आदि घनी अहीर आबादी वाले जिले है।
सिंध प्रांत में बसे कच्छ अहीरों की सांस्कृतिक राजधानी है।

कच्छ और कच्छ के अहीर गुजरात का अभिमान और सिरमौर हैं।

कच्छ भारत का सबसे पश्चिमी छोर है जहाँ अहीरों की घनी जनसंख्या है।

कच्छ अहीरों की सांस्कृतिक राजधानी मानी जाती है जहाँ लगभग 4 लाख अहीर पाए जाते हैं।

कच्छ क्षेत्रफल के हिसाब से भारत का सबसे बड़ा जिला भी है।
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पौराणिक काल में द्वारिका इतनी भव्य और समृद्ध थी कि इसे यादवों का Atlantis कहा गया था।

गुजरात के यदुवंशी अहीरों ने आज भी अपनी आर्य सभ्यता और क्षत्रिय संस्कृति को जीवित रखा है।

गुजराती यदुवंशी अहीरों का पहनावा, बोली, खान-पान सबसे अलग है।

गुजराती अहीर-राणा आज भी अपने क्षत्रिय संस्कृति का पालन करते हैं जैसे साफ़ा बांधना, तलवार रखना, खास तरह के कानों में बड़े कुंडल पहनना आदि।

इनकी सफ़ेद पोशाक और क्षत्रिय गुणों के कारण इन्हें "White-millitary" कहा जाता है।
अहीर-राणाओं को आदर से "आपा" भी कहा जाता है जिसका अर्थ है पिता का पिता अर्थात पितामह/दादा।

यहाँ के अहीर अश्व प्रेमी हैं और पूरे गुजरात में विश्वप्रसिद्ध काठियावाड़ी नस्ल के सबसे ज्यादा अश्व अहीरों और काठी दरबारों के पास ही पाए जाते हैं।

गुजरात में आज भी यदुवंशी अहीर क्षत्रियो की पारंपरिक खाप पंचायत ( डायरो )वार्तालाप की परम्परा है । खाप पंचायत व्यवस्था यदुवंशी अहीरों की ही देन है जिसके साक्ष्य महाभारत काल से मिलते हैं । महाभारत काल में भी इसी तरह सभी गोत्रों के यदुवंशी सरदार एक दूसरे से राजधानी मथुरा में मिलकर वार्तालाप किया करते थे । लेकिन अफ़सोस देखिए कि आज अगर हम गुजरात को छोड़ दें तो हमारी खाप पंचायतें लगभग हर राज्य में ख़त्म हो चुकी हैं।

गुजरात के क्षत्रिय अहीरों के काठी दरबारों, चुड़ासमा आदि सभी क्षत्रिय के संग गज़ब का भाईचारा है और सभी एक दूसरे का आदर भी करते है।

चुडासमा राजपूत अहीरों को आदरपूर्वक मामा कहकर बुलाते है और चुडासमा तो यहाँ तक अहीरों का सम्मान करते हैं कि अपने पुत्रो के कानों में अहीर वीरों के जैसे बड़े कुंडल ही पहनाते हैं।

गुजराती अहीरानियों ने भी अपनी परंपरा को जीवित रखा है और जैसे पारंपरिक पोशाक, हर वक्त आभूषण से सज्ज आदि अपनी पौराणिक संसकृति आज भी जीवित रखी है।
गुजरात का नाम आते ही यहाँ के अहीरों का विश्वप्रसिद्ध गरबा ज़ेहन में आता है। गरबा या डांडिया रास अहीरों की ही देन है। मान्यता के अनुसार डांडिया या गरबा की शुरुआत बृज के अहीरों से शुरू हुई। ये एक विशेष तरह का और सबसे पुराना मार्शल आर्ट है जो क्षत्रिय अहीरों के Agressive क्षत्रिय संसकृति का प्रतीक है।

यहाँ का खासकर अहीर-महारास गरबा सबसे प्रसिद्ध है।
इसमें अहीर-राणा तलवारबाज़ी करते हैं।

गुजरात में हर साल कच्छ और द्वारका में अहीर जन्माष्ठमी बहुत ही धूम धाम से मनाते है।द्वारकाधीश के वंशज यदुवंशी अहीर ही द्वारका मंदिर में प्रथम ध्वज फहराते है।यदि आप गुजरात जाए तो अपको ढेर सारी पत्थर की मूर्तियां हर गाँव में योद्धाओं की मिलेंगी जिस पलीया कहते है।जिनमें से 90 प्रतिशत पलीया अहीर योद्धाओं की ही होती है।

इस वर्ष के अंत तक गुजरात के यदुवंशी क्षत्रियों के क्षत्रिय इतिहास पर एक बड़े बजट की मूवी आने जा रही है जिसका नाम "राजधर्म" है जो श्री देवायत बोदर जी की जीवनी पर होगी।
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गुजरात के यादवो से पूरे देश के यादवो को सीखना चाहिए, गुजरात के अहीरों की तरह फिर से सभी अहीरो को पारंपरिक वेशभूषा और यदुवंशियो का पारंपरिक खाप पंचायत का शुरुआत करना चाहिए।

ऐसे अनूठे और प्यारी संस्कृति को समझने के लिए एक बार गुजरात ज़रूर पधारें।
 
Special thanks to:- #यादव_उत्थान_समिति_भारत

जय द्वारकाधीश ।।
जय यदुकुल ।।

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