धरती की घुटती सांस लौटने लगी :- संजीव कुमार यादव, प्रदेश उपाध्यक्ष भाजपा किसान मोर्चा सह सदस्य-राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान परिषद ,भारत सरकार

धरती की घुटती सांस लौटने लगी

 भौतिक विकास के नाम पर धरती के पर्यावरण का हमने जो नुकसान किया है वह चिंता का विषय हो गया था। विकासशील देश भी पर्यावरण नष्ट करने के अभियान में शामिल हो गए थे । एक लंबी अवधि तक हालात चिंतनीय थे । लेकिन वैश्विक कोरोना महामारी की दशहत पूरे विश्व में लॉक डाउन से पर्यावरण को स्वस्थ होने की दिशा में एक नया अध्याय जोड़ दिया। हवाओं में मैं जहरीली तीक्षणता कम हो गई। नदियों का जल निर्मल हो गया। भारत में जिस गंगा को साफ करने का एक खर्चीला अभियान चल रहा था । करोड़ों रुपए खर्च करने पर भी सफलता बहुत कम मिल रही थी। उसमें उस मैली हो रही गंगा को लॉक डाउन से निर्मलता अभियंता मिल गई। कुछ सीमावर्ती स्थानों से हिमालय की चोटियां दिखने लगी।

विगत वर्षों की तुलना में प्रदूषण काफी कम हो गया सड़कों पर वाहनों की आवाजाही में आश्चर्यजनक रूप से जहरीली गैस, नाइट्रोजन और सल्फर ऑक्साइड का प्रसार कम हुआ। यदि विगत महीनों की समीक्षा की जाए तो यह स्पष्ट हुआ है कि लॉक डाउन के कारण जन सामान्य को भले ही कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा हो लेकिन पर्यावरण आदि सहित कई स्थितियों में लॉकडाउन का सकारात्मक पहल भी सामने आया है। न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया में प्रदूषण स्तर काफी कम दिखाई दे रहा है। हवाएं भी स्वछता का अनुभव होने लगा है ।सांस के रोगियों को राहत का अनुभव हो रहा है।

लॉक डाउन  के करें पर्यावरण में आया सकारात्मक परिवर्तन हमें इस बात का एहसास दिलाता है कि यदि प्रकृति और उसके संसाधनों का अनुचित दोहन नहीं किया जाए तो हम कई मुसीबतों जैसे बाढ़, सूखे, बढ़ते तापमान, अतिवृष्टि - अनावृष्टि से बच सकते हैं ।ग्लेशियरों को पिघलने से भी बचा सकते हैं। विलुप्त होते पक्षियों को बचाया जा सकता है।

 कोरोना  महामानी ने हमें यह भी समझा दिया है कि यदि पृथ्वी को बचाना है तो उसके संरक्षण के लिए हमें कोई कारगर नीति बनानी होगी। पेड़ -पौधे ,जंगलों और जानवरों को बचाना और संरक्षण देना होगा। जीवन दायिनी नदियों को प्रकृतिक तौर पर आगे बढ़ने के लिए संरक्षण दिया जाए। नदियों में गिरने वाले नालों और कल- कारखानों से निकलने वाले गंदे पानी पर रोक लगाई जाए। यह सब सिर्फ कानून बनाने से नहीं बल्कि जनता को जागरूक भी करना होगा। साथ ही जनता को अपना दायित्व का निर्वाह भी करना होगा।

 एक अनुमान के अनुसार घर का हो या बाहर का बायु प्रदूषण दोनों के कारण पूरी दुनिया में प्रत्येक वर्ष लगभग 1 करोड़ लोगों की मौत असमय हो जाती है । इनमें अच्छी खासी संख्या बच्चों की भी होती है। देश में निर्माण कार्य औधोगिक प्रदूषण, भोजन बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले इंधन तथा वाहनों से निकलने वाले धुए के कारण भी प्रत्येक वर्ष वायु प्रदूषण का असर बढ़ता जा रहा है। इस बढ़ते प्रदूषण के कारण विकासशील देशों की स्थिति और इसमें भी भारत की स्थिति काफी दयनीय है। बाय प्रदूषण के सबसे खराब स्तर वाले शहरों की सालाना सूची में भारत के शहर अक्सर टॉप पर रहते हैं ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से जुड़ी एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 90 फ़ीसदी आबादी प्रदूषित हवा में सांस ले रही है। कुछ समय पूर्व संयुक्त राष्ट्र के एक पर्यावरण विशेषज्ञ ने कहा था कि करीब 6 अरब लोग नियमित रूप से घातक प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं ।जिनमें उनकी जिंदगी और सेहत जोखिम से भरी है। पिछले दिनों एक बताए गए आंकड़ों के अनुसार दुनिया में प्रति घंटे लगभग 1 हजार  लोग मर रहे हैं । कैंसर, सांस की बीमारियों और दिल के रोगों में प्रदूषित हवा के कारण लगातार वृद्धि हो रही है । इसके कारण मधुमेह में भी बढ़ोतरी हो रही है। इसे उच्च रक्तचाप के लिए भी जिम्मेदार माना गया है । हमारे देश में वायु प्रदूषण के कारण सांस के रोग हृदय की बीमारियां, ह्रदयघात, फेफड़ों के रोग आदि के कारण समय से पूर्व मृत्यु की दर बढ़ती जा रही है।

 लॉक डाउन के बाद भारत की जो नई तस्वीर उभरकर सामने आई है उससे यह संकेत मिलते हैं कि भारत के पास पर्यावरण को बचाने के लिए तमाम नुस्खे मौजूद है।इन नुस्खों से देश की ज्यादा से ज्यादा आबादी को ऑनलाइन सुविधाओं से जोड़कर परखा जा सकता है ।

स्वच्छ हवा सुनिश्चित करने के लिए कुछ प्रयास किए जाने की जरूरत है इसमें वायु गुणवत्ता एवं मानव स्वास्थ्य पर उसके प्रभावों की निगरानी, वायु प्रदूषण के स्रोतों का आकलन और जन स्वास्थ्य परामर्श सहित अन्य सूचनाओं की सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध करवाना शामिल है  यह कटु सत्य है कि वायु प्रदूषण का एक बड़ा कारण वाहनों से निकलने वाले जहरीले धुआं है । 

अब समय आ गया है कि हम इस बात पर गंभीरता से मंथन करें कि ऐसे कौन-कौन से उपाय किए जाएं जिससे अपनी दिनचर्या रोजी-रोटी चलाने के लिए लोगों को कम से कम सड़क पर आना पड़े । विकसित और विकासशील देशों में जो आम जन  घरों में बैठे-बैठे ऑनलाइन निपटा लेते हैं । उसी काम को करने के लिए आम भारतीयों को सरकारी ऑफिसों, बैंक,  मेडिकल स्टोरों, फल सब्जी और राशन की दुकानों आदि के चक्कर लगाने पड़ते हैं ।इस कारण आम भारतीयों को समय, श्रम और पैसा तीनों बर्बाद करना पड़ता है। बेतहाशा दौड़ती गाड़ियों के लिए महंगा इंधन लगाना पड़ता है। सड़क पर भीड़ बढ़ती है । जिसके कारण प्रदूषण बढ़ता है। प्रदूषण बढ़ता है। तो इसका विपरीत प्रभाव लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ता है।

 लॉक डाउन के कारण देश की नदियों में प्रदूषण स्तर में जो महत्वपूर्ण सुधार आया है। भूमि जल स्तर लगभग 8-10 फिट ऊपर हो गया। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार गंगा की घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा में वृद्धि हुई है । वर्तमान में अब तक की पूरी अवधि के सामने आएंगे तो निश्चित ही पर्यावरण के लिहाज से क्रांतिकारी होंगे ।

आज पूरी दुनिया कोरोना वायरस की वजह से घरों में कैद थी । इसकी वजह से कई मुश्किलें भी आए । लेकिन लॉक डाउन का पर्यावरण पर अच्छा असर देखने को मिला है। धरती  की घुटती सांस लौटने लगी।  अब हम सामान्य जीवन की ओर वापस हो रहे हैं । हवा पानी साफ और निर्मल हुए हैं। ध्वनि प्रदूषण कम हुआ है । इस तरह हम देखे तो लॉक डाउन का हमारे देश, जीवन, समाज और पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

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